गोवर्धन पूजा कथा विधि महत्व ( Govardhan puja vidhi,mahtav aur kya hai )
गोवर्धन पूजा ( Govardhan puja )दिवाली के अगले दिन ही होता है इसे अंकुट भी कहते हैं। किसान भाई बड़े भाव से इस पूजा को करते हैं। जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों को धन्यवाद देते हैं।
गोवर्धन पूजा का महत्व ( govardhan puja ka mahtav )
गोवर्धन पूजा का महत्व है कि हमारा जीवन प्रकृति की हर एक चीज पर ही निर्भर है जैसे कि पेड़,पौधे, पशु, पंछी,नदी, पर्वत उन पर ही निर्भर है। इसलिए हमें उनका ध्यान देना चाहिए। हमारे भारत देश में जलवायु संतुलन का बहुत बड़ा महत्व है। जलवायु संतुलन का विशेष कारण पर्वत मालाएं एवं नदियां हैं। प्राकृतिक धन-संपत्ति के प्रति हमारी भावना व्यक्त करता है। गोवर्धन के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा बड़े श्रद्धा भाव से की जाती है। यह गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। इस गोवर्धन पूजा में गाय माता की पूजा की जाती है क्योंकि गाय माता के ही दूध की छाछ, दही, मक्खन यहां तक कि गाय का गोबर, गाय का मुत्र भी हमारे जीवन का कल्याण करता है। गाय का गोबर, दूध, मुत्र सब पूजा के काम आता है। गाय हमारे हिंदू धर्म में गंगा नदी के बराबर मानी जाती है। इसे गोवर्धन पूजा के अन्नकुट भी कहते हैं। अंकुट में भंडारा होता है कई जगह तो यह एक पार्टी जैसा भी मनाया जाता है और यह महीनों तक चलता रहता है। यह पूजा बहुत ही अच्छी लगती है।
गोवर्धन पूजा की कथा ( govardhan puja ki katha )
गोवर्धन पूजा एक पौराणिक कथा है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण का जन्म तो गोकुल में हुआ था। गोकुल में जन्म लेने के बाद ग्वाले के बीच में रहकर भगवान कृष्ण ने विशेष लीलाएं करी थी। कई लोगों का घमंड भी तोड़ा था। कईयों का उद्धार भी किया था। उन्हीं लोगों में एक इंद्रदेव भी है। गोकुल के लोग अच्छी फसल अच्छी जलवायु के लिए इंद्र देव का पूजा भी करते थे। गोकुल वासी हर वर्ष नाचते गाते हुए इंद्र देव की पूजा अर्चना करते थे। इस पूजा को जानने के लिए कृष्ण भगवान ने नंद बाबा से पूछा, यह पूजा क्यों आप करते हैं और किसके लिए करते हैं। तब नंदबाबा ने बाल कृष्ण को बताया कि यह पूजा हम इंद्र देव के स्वागत के लिए करते हैं। इस पर बाल कृष्ण ने नंद बाबा सहित अपने गांव वासियों को समझाया कि इंद्रदेव कि नहीं हमें गोवर्धन पर्वत का स्वागत पूजा-अर्चना बड़े भक्ति भाव से करना चाहिए। कृष्ण की बात मानकर सभी गांव वासियों और नंदबाबा भी बड़े हर्षित हो उठे। और उसके साथ गोवर्धन पर्वत की पूजा की। यह देखकर इंद्रदेव उनसे रूठ गए और गोकुल में आंधी तूफान शुरू कर दिया। सभी ग्रामवासी रोने लगे और उन्हें लगा कि हमारे जीवन खतरे में है। सभी ग्रामवासी पूरी तरह से घबरा गए। ऐसे समय पर बाल कृष्ण ने महान गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी सी उंगली पर उठा लिया और सभी गोकुलवासियों को उस पर्वत के नीचे जीवन दान दिया। फिर इंद्रदेव से युद्ध भी किया और उनका भी घमंड तोड़ दिया। उन्हें एहसास हुआ कि जिस जलवायु के लिए हम अपने आप को महान समझते थे। वह गलत है तभी से गोवर्धन की पर्वत की पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। मंदिरों में भंडारा होता है। गोवर्धन को लोग गोबर से मंदिरों में पर्वत के रुप में मनाते हैं। उनकी पूजा करते हैं। इस दिन हम कृष्ण और गोवर्धन की पूजा करते हैं और गोवर्धन पर्वत की भी पूजा बड़े भाव से होती है।
गोवर्धन पूजा की विधी ( govardhan puja ki vidhi )
गोवर्धन की पूजा किसान करते हैं किसान खेतों से शुद्ध मिट्टी अथवा गाय का गोबर और 56 प्रकार का भोजन बनाकर उनकी पूजा करते हैं। गाय के गोबर से घर के मुख्य द्वार के आंगन में गोवर्धन बनाया जाता है फिर उन्हें नवेद चढ़ाकर गोवर्धन की पूजा की जाती है।
विधि ( vidhi )
सुबह जल्दी उठकर हम स्नान करके शुद्ध होकर साफ सुथरे कपड़े पहन कर अपनर घर में पकवान बनाते हैं। खेत में भी गोबर से भगवान गोवर्धन की प्रतिमा बनाई जाती है। साथ ही खेत में भी पूजा की जाती है। जितना संभव हो उतना बनाकर आप गोवर्धन पूजा में शामिल हो सकते हैं। गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रकृति की पूजा है। हमें सब कुछ प्रकृति से मिलता है। इन्हें हमें हमेशा ही धन्यवाद करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा पौराणिक पूजा है। यह पूजा दिवाली के अगले दिन हम करते हैं जिसकी जैसी श्रद्धा है उसी भाव से की जाती है। गोवर्धन पर्वत अभी भी मौजूद है। वहां पर अभी भी सब जाते हैं उनकी परिक्रमा करते हैं। उनका दर्शन करते हैं। पर्वत के आकार का बहुत बड़ा महत्व है। लोग अपनी कामना लेकर जाते हैं सभी की कामना गोवर्धन भगवान पूर्ण करते हैं। यही इनकी कथा है। इसी प्रकार इनका पूजन होता है और यह इनका महत्व गाय माता की पूजा पर निर्भर है। गोवर्धन पूजा बड़ी पूजा है हमें प्रकृति से मिलाती है।